
बांग्लादेश के मयमनसिंह जिले के भालुका इलाके से आई यह खबर न सिर्फ चौंकाने वाली है, बल्कि 21वीं सदी में मानवता की स्थिति पर भी सवाल खड़े करती है। 25 वर्षीय फैक्ट्री कर्मचारी दीपू चंद्र दास को ईशनिंदा के आरोप में एक उग्र भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला, फिर उसके शव को मुख्य सड़क पर पेड़ से लटकाकर आग लगा दी। हैरानी की बात यह रही कि इस अमानवीय घटना का लाइव वीडियो प्रसारित किया गया।
हत्या के दो दिन बाद कार्रवाई
घटना के बाद प्रशासन हरकत में आया। १२ आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, इन्हें अलग-अलग जगहों से पकड़ा।
गिरफ्तार आरोपियों में 19 से 46 वर्ष की उम्र के लोग शामिल हैं, जिनमें फैक्ट्री के कर्मचारी और मैनेजर स्तर के लोग भी हैं।
भीड़ तक कैसे पहुंचा दीपू? फैक्ट्री मैनेजमेंट पर सवाल
RAB के अनुसार फैक्ट्री के फ्लोर मैनेजर आलमगीर हुसैन ने पहले दीपू से जबरन इस्तीफा दिलवाया। इसके बाद उसे आक्रोशित भीड़ के हवाले कर दिया। यही नहीं, क्वालिटी मैनेजर मिराज हुसैन को भी इस मामले में गिरफ्तार किया गया है।
बड़ा सवाल यही है— पुलिस को बुलाने की बजाय युवक को भीड़ क्यों सौंपा गया?
जांच एजेंसियों को शक: पुरानी रंजिश या दबाव
RAB निदेशक नैमुल हसन ने कहा कि यह मामला केवल भीड़ का नहीं। बल्कि पुरानी रंजिश, कार्यस्थल विवाद या भीड़ के दबाव का भी हो सकता है।
जांचकर्ता इस पूरे नेटवर्क और साजिश की परतें खोलने में जुटे हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: मानवता की हार
इस घटना पर वैश्विक स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाएं आईं-
तस्लीमा नसरीन ने कहा—

“एक मामूली बहस को ईशनिंदा का झूठा आरोप बनाकर एक निर्दोष की जान ले ली गई।”
आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने इसे
“21वीं सदी को शर्मसार करने वाली बर्बरता” बताया।
प्रियंका गांधी वाड्रा ने भारत सरकार से आग्रह किया कि
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा आधिकारिक तौर पर उठाया जाए।
जब कानून चुप रहता है तो भीड़ खुद को जज समझने लगती है… और इंसान, बस एक अफवाह बनकर रह जाता है।
बीजेपी नेता ज़ीशान हैदर ने कहा
@digvijaya_28 को जल्द से जल्द पागलखाने भेज देना चाहिए..एक तरह ये आदमी कहता है कि हिंसा के बदले हिंसा नहीं होनी चाहिए और अभी कहीं ना कहीं बांग्लादेश में हुई हिंसा को endrose करते दिख रहे है shame on you …
